माफिया डॉन श्री प्रकाश शुक्ला: आगाज से अंजाम तक



संवाददाता ए के सिंह 

उत्तर प्रदेश के अपराध जगत में श्री प्रकाश शुक्ला एक ऐसा नाम है, जिसकी दहशत 90 के दशक में पूर्वी यूपी से बिहार तक गूंजती थी। महज 25 साल की उम्र में वो माफिया डॉन बन चुका था, जिसकी AK-47 की तड़तड़ाहट ने राजनेताओं, ठेकेदारों और पुलिस को दहला दिया। उसका सफर एक गांव के पहलवान से शुरू होकर सुपारी किलर और फिर अंडरवर्ल्ड के सरगना तक पहुंचा। ये कहानी क्राइम, सत्ता और खून की होली की है, जो यूपी के अंधेरे गलियारों में लिखी गई।

आगाज मिट्टी से उठा तूफान

6 अक्टूबर 1973, दशहरे का दिन। गोरखपुर के मामखोर गांव में राम समुज शुक्ला के घर जन्मा शिव प्रकाश, जिसे बाद में श्री प्रकाश शुक्ला के नाम से जाना गया। पिता रिटायर्ड एयर फोर्स अफसर और ठेकेदार, परिवार सम्मानित ब्राह्मण। बचपन से कुश्ती का जुनून—स्थानीय अखाड़ों में कई मेडल जीते। स्कूल में पढ़ाई औसत, लेकिन हिम्मत बुलंद। 1993 में क्राइम की दुनिया में पहला कदम। गोरखपुर में केबल टीवी के धंधे की रंजिश में राकेश तिवारी की हत्या। कुछ का कहना है, तिवारी ने शुक्ला की बहन को छेड़ा था। पहला केस दर्ज, पुलिस का दबाव। शुक्ला फरार, बैंकॉक भागा। वहां से लौटा तो एक प्रोफेशनल किलर बन चुका था।

खौफ का साम्राज्य.90 का दशक

यूपी और बिहार में माफिया राज चरम पर। शुक्ला ने जल्दी ही सुपारी किलिंग का धंधा शुरू किया। 1997 में लखनऊ के इंदिरानगर में दबंग विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही की हत्या—AK-47 से छलनी। शाही खुद अंडरवर्ल्ड का दबंग था, लेकिन शुक्ला ने उसे रास्ते से हटा दिया। इस हत्या ने कल्याण सिंह सरकार को हिलाकर रख दिया। उसी साल लखनऊ के दिलीप होटल में रेलवे ठेकेदार की हत्या। यूपी में पहली बार AK-47 की धमक। फिर बिहार में RJD नेता बृज बिहारी प्रसाद का कत्ल। 6 करोड़ की सुपारी। प्रसाद अस्पताल में भर्ती थे; शुक्ला खुद मरीज बनकर वार्ड में घुसा और फायरिंग कर दी। ये हत्या बिहार-UP के गैंगवॉर का टर्निंग पॉइंट थी।शुक्ला का गैंग फैला—सुधीर त्रिपाठी, अनुज प्रताप सिंह जैसे गुर्गे। किडनैपिंग का धंधा जोड़ा। 26 मई 1998 को लखनऊ के बॉटनिकल गार्डन से बिजनेसमैन के बेटे कुणाल रस्तोगी का अपहरण। बचाने आए पिता को शुक्ला ने गोली मार दी। उसका रसूख बढ़ा—कुछ मंत्रियों और IPS-IAS अफसरों से कनेक्शन। लग्जरी कारों का शौक—ब्लू डैवू सिएलो उसकी पहचान। फ्लैशी कपड़े, कई गर्लफ्रेंड्स। प्लानिंग में माहिर, किलिंग में बेरहम।

*सितंबर 1998 में अंजाम तक पहुंचा श्री प्रकाश शुक्ला*

*यूपी STF और आखिरी गोली*

शुक्ला के ताबूत में आखिरी कील ये बात साबित हुई कि उसने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री की हत्या के लिए 6 करोड़ की सुपारी ली है

शुक्ला का खौफ ऐसा कि 4 मई 1998 में यूपी STF का गठन हुआ। टारगेट थे उस समय के 43 टॉप क्रिमिनल्स, नंबर वन श्री प्रकाश शुक्ला। STF चीफ अरुण कुमार और राजेश पांडे ने फोन टैपिंग, इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस शुरू किया और यूपी एसटीएफ के जवानों ने श्री प्रकाश शुक्ला की तलाश में दिन रात देखे बिना पूरे यूपी की खाक छानना शुरू कर दिया, ताबड़तोड़ छापेमारी से उस समय पूरे यूपी में सनसनी फैल गई थी, संगठित अपराध के विरुद्ध एक नई टीम के एक्शन में आते ही अंडरवर्ल्ड में दहशत का माहौल बन गया था।

23 सितंबर 1998, गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में STF ने शुक्ला, सुधीर और अनुज को घेरा लिया,  ताबड़तोड़ फायरिंग हुई, शुक्ला ने AK-47 से जवाब दिया, लेकिन STF ने उसे ढेर कर दिया। 6 गोलियां खाकर भी वो लड़ता रहा। शुक्ला के पास से AK-47, ग्रेनेड और लाखों कैश बरामद हुआ था, बाद में STF ने उसके गैंग को भी नेस्तनाबूद कर दिया था।

शुक्ला की मौत ने यूपी के माफिया राज को बड़ा झटका दिया था। उसका नाम आज भी क्राइम की किताबों में दर्ज है। 2005 की फिल्म 'सहर' और 2021 की वेबसीरीज रंगबाज ने उसके मिथक को जिंदा रखा। लेकिन हकीकत यही—वो एक खतरनाक किलर था, जिसने सत्ता और अपराध के गठजोड़ को बेनकाब किया। उसका आगाज गांव की मिट्टी से हुआ, और अंजाम गोलियों की बौछार में बदल गया।


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