गुरुद्वारा संपत्ति पर दिल्ली वक्फ बोर्ड के दावे को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज



संवाददाता ए के अंजान 

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. वक्फ बोर्ड ने राष्ट्रीय राजधानी के शाहदरा इलाके में एक जमीन पर दावा किया था. इस जमीन पर देश विभाजन के बाद से गुरुद्वारा काम कर रहा है.
यह मामला न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के समक्ष आया था. पीठ के समक्ष दिल्ली वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने किया. गुरुद्वारा की संपत्ति पर दिल्ली वक्फ बोर्ड का दावा खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुरुद्वारा ठीक से काम कर रहा है.
सुनवाई के दौरान घोष ने दलील दी कि निचली अदालतों ने माना था कि वहां मस्जिद थी, लेकिन अब वहां किसी तरह का गुरुद्वारा है. पीठ ने वकील से कहा कि यह किसी तरह का गुरुद्वारा नहीं है, बल्कि यह ठीक से काम करने वाला गुरुद्वारा है, साथ ही ये कहा कि, "जब गुरुद्वारा है तो उसे रहने दो."
पीठ ने कहा कि वहां पहले से ही एक धार्मिक संरचना कार्य कर रही है. ऐसे में याचिकाकर्ता को अपना दावा छोड़ देना चाहिए. इसके साथ ही रिकॉर्ड से पता चलता है कि 1948 से भूमि पर एक धार्मिक संरचना कार्य कर रही है. बोर्ड के रिकॉर्ड के मुताबिक, शीर्ष अदालत के समक्ष विचाराधीन संपत्ति को “मस्जिद तकिया बब्बर शाह” के रूप में अधिसूचित किया गया था.
सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा 2012 में दायर की गई अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के 24 सितंबर, 2010 के आदेश को चुनौती दी गई थी. उच्च न्यायालय ने माना था कि संपत्ति पर स्वर्गीय हीरा सिंह का कब्जा है, जिन्होंने 1953 में मोहम्मद अहसान से संपत्ति खरीदी थी.
सर्वोच्च न्यायालय में बोर्ड के वकील ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने तथ्य में समवर्ती निष्कर्षों को बाधित किया है, जो कि निचली अदालत द्वारा उनके मुवक्किल के पक्ष में निर्णय दिया गया था: पहला निर्णय अक्टूबर 1982 में और दूसरा निर्णय फरवरी 1989 में.

वकील ने तर्क दिया कि यह संपत्ति अनादि काल से वक्फ संपत्ति के रूप में समर्पित है और मुकदमे में गवाहों ने गवाही दी है कि वहां एक मस्जिद थी.
दलीलें सुनने के बाद पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ वक्फ बोर्ड द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया.
दिल्ली वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि यह संपत्ति अनादि काल से वक्फ के रूप में उपयोग की जाती रही है. साथ ही इसे 3 दिसंबर, 1970 को राजपत्र की अधिसूचना में अधिसूचित किया गया था. इसके बाद में 29 अप्रैल, 1978 की एक अन्य अधिसूचना द्वारा इसे सही किया गया था, जिसे 18 मई, 1978 को दिल्ली राजपत्र में प्रकाशित किया गया था.
उच्च न्यायालय ने कहा था कि सिंह 1947-48 से इस संपत्ति पर काबिज थे. उन्होंने इस बात पर गौर किया कि बोर्ड, जिसने संपत्ति को वक्फ संपत्ति होने का दावा किया था, ने तारीखें नहीं बताईं. इसका मतलब यह नहीं बताया कि किस तारीख से संपत्ति का उपयोग मस्जिद के रूप में किया जा रहा था।

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