रांगेय राघव के सृजनलोक पर राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न





संवाददाता अब्दुर्रहीम शेख़


आजमगढ़ महाराजा सुहेल देव विश्वविद्यालय, आजमगढ़ के रांगेय राघव शोध पीठ द्वारा हिंदी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार रांगेय राघव और उनके सृजनलोक पर एक राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन मंगलवार, 8 अप्रैल 2025 को किया गया। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय परिसर के सभागार में दोपहर 12 बजे से 3:30 बजे तक संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार के स्वागत वक्तव्य से हुआ। उन्होंने कहा, "रांगेय राघव का साहित्य हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर है, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है। यह परिसंवाद उनके योगदान को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सार्थक प्रयास है।" इस अवसर पर रांगेय राघव के व्यक्तित्व पर आधारित एक संक्षिप्त वृत्तचित्र प्रस्तुत किया गया। साथ ही, श्रीमती सुलोचना राघव, प्रो. सीमंतिनी राघव और वरिष्ठ आलोचक डॉ. जीवन सिंह के ऑनलाइन संदेश भी साझा किए गए। श्रीमती सुलोचना राघव ने अपने संदेश में कहा, "रांगेय जी का जीवन और साहित्य मानवता के प्रति उनकी गहरी संवेदना का प्रमाण है।" वहीं, डॉ. जीवन सिंह ने टिप्पणी की, "उनकी रचनाएँ सामाजिक चेतना और प्रगतिवाद का अनूठा संगम हैं।"
परिसंवाद में मुख्य अतिथि प्रो. सत्यकाम, कुलपति, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने कहा, "रांगेय राघव ने हिंदी साहित्य को बहुआयामी दृष्टिकोण दिया, जो आज भी प्रासंगिक है।" विशिष्ट अतिथि प्रो. रघुवंश मणि, प्रसिद्ध आलोचक और अंग्रेजी विभाग, शिवहर्ष पी.जी. कॉलेज, बस्ती ने अपने विचारों में कहा, "रांगेय राघव की रचनाएँ इतिहास और साहित्य के बीच सेतु हैं, जो हमें सोचने के लिए प्रेरित करती हैं।" कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. एम.पी. सिंह, प्रसिद्ध कवि, चिंतक और पूर्व प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, टी.डी. कॉलेज, जौनपुर ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा, "रांगेय राघव का साहित्य मानव जीवन की जटिलताओं को सरलता से प्रस्तुत करता है।"
मुख्य वक्ता डॉ. वंदना चौबे, सुपरिचित आलोचक और एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, आर्य महिला पी.जी. कॉलेज, वाराणसी ने अपने विचार रखते हुए कहा, "रांगेय राघव की कहानियाँ और उपन्यास सामाजिक परिवर्तन के दस्तावेज हैं, जो हमें संवेदनशीलता सिखाते हैं।" आयोजन सचिव डॉ. संजय श्रीवास्तव और प्रो. समीर पाठक, सुपरिचित आलोचक, हिंदी विभाग, डीएवी कॉलेज, वाराणसी ने संचालन में अहम भूमिका निभाई। प्रो. पाठक ने कहा, "रांगेय राघव का साहित्य प्रगतिशीलता और मानवतावाद का प्रतीक है।" संयोजक प्रो. सुजीत कुमार श्रीवास्तव 'भूषण' ने अपने वक्तव्य में कहा, "यह परिसंवाद रांगेय राघव के साहित्यिक अवदान को समकालीन संदर्भ में समझने का अनूठा अवसर प्रदान करता है।"
डॉ. शफीउज़्ज़मां, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान, शिब्ली नेशनल कॉलेज ने इस परिसंवाद में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "रांगेय राघव का साहित्य न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि यह सामाजिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं को भी गहराई से प्रतिबिंबित करता है। उनकी रचनाएँ हमें समाज के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता का पाठ पढ़ाती हैं।"
इस आयोजन में शिब्ली नेशनल कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग की तरफ से गुलाम रसूल, दिव्यशक्ति कुमार गौतम, गोविंद यादव, दासू चौहान, माहिर रजा, मानसी मौर्या, आयुषी यादव, सुषमा पांडेय, प्रियंका, प्रतिभा यादव, प्रतिमा पाल और ज्योति यादव ने भी सक्रिय भागीदारी की। आयोजन समिति में प्रो. हसीन खान, डॉ. अशोक कुमार पाण्डेय, डॉ. सूर्यप्रताप अग्रहरि सहित कई विद्वान शामिल रहे। परामर्श समिति के सदस्य जगदीश बरनवाल 'कुंद', प्रसिद्ध साहित्यकार ने कहा, "रांगेय राघव का साहित्य जीवन की सच्चाई को उजागर करता है।" डॉ. रविंद्र नाथ राय, संपादक-सामयिक कारवाँ ने टिप्पणी की, "उनकी रचनाएँ समाज का दर्पण हैं।"
स्वागत समिति में प्रो. गीता सिंह, प्रो. रामानंद सिंह, डॉ. ईश्वर चंद्र त्रिपाठी, डॉ. पंकज सिंह, डॉ. शफीउज़्ज़मां और डॉ. संजय कुमार यादव ने अतिथियों के स्वागत में योगदान दिया। व्यवस्था समिति में त्रिशिका श्रीवास्तव, निधि सिंह, शुभम राय, मोहन झा, डॉ. योगेश त्रिपाठी, नितेश सिंह, डॉ. शिवेंद्र सिंह, डॉ. मिथिलेश कुमार यादव, डॉ. वैशाली सिंह और शिवानी शर्मा ने आयोजन को सुचारु रूप से संपन्न कराया।
यह परिसंवाद साहित्य प्रेमियों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों के लिए विचार-मंथन का महत्वपूर्ण मंच साबित हुआ।

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