1. गिफ़्ट-गिफ़्ट ना रहा, बर्थ डे बर्थ डे ना रहा! : राजेंद्र शर्मा




अब क्या इन विपक्ष वालों को शिष्टाचार भी मोदी जी को ही सिखाना पड़ेगा? बताइए, 17 सितंबर को मोदी जी का जन्म दिन था या नहीं। जन्म दिन भी मामूली नहीं, पचहत्तरवां। जन्म दिन, जो बस मोदी जी को छोड़कर सारी दुनिया ने मनाया। मोदी जी ने नहीं मनाया माने वैसे छुट्टी-वुट्टी लेकर नहीं मनाया, जैसे ज्यादातर बाइलॉजीकल लोग मनाते हैं। नॉन-बाइलॉजीकल जो ठहरे।

मोदी जी छुट्टी-वुट्टी कहां लेते हैं? सुना है ग्यारह साल में मोदी जी ने एक भी छुट्टी नहीं ली है। ओन्ली ड्यूटी, नो छुट्टीr। मोदी जी कम से कम अपने लिए तो कोई छुट्टी-वुट्टी नहीं ही लेते हैं। और परिवार वाला होने का इल्जाम उन पर कोई लगा नहीं सकता है। हां! देश के लिए ही छुट्टी लेनी पड़ जाए, तो बात दूसरी है। यानी जिस दिन सारी दुनिया उनका जन्म दिन मना रही थी, उस दिन भी मोदी जी हर रोज की तरह काम कर रहे थे। जी हां, मध्य प्रदेश में धार में पहले पीएम-मित्र पार्क के उद्घाटन का काम। ऐसी है मोदी जी की काम की लगन। कोई उद्घाटन हो, कोई बटन दबाना हो, कोई झंडी दिखाना हो या पब्लिक को सौगात देने का एलान करना हो, मोदी जी, सारा काम खुद अपने हाथों से करते हैं। और हां! मौका कोई भी क्यों न हो, चुनावी भाषण भी। और जगह कोई भी हो, उसके साथ पुराने और खास रिश्ते की खोज भी।

बताइए, ऐसे कामधुनी व्यक्ति को भी —नॉन-बायोलॉजीकल बंदे को भी व्यक्ति कह सकते हैं क्या (?) -- भाई लोग रिटायर कराने पर तुले हुए थे। बस एक ही एक ही रट लगा रखी थी—पचहत्तर साल पूरे हो गए। अब और किसी को मौका दिया जाए! जिसने कभी एक दिन की छुट्टी नहीं ली, चाहते थे कि राजी-राजी परमानेंट छुट्टी पर चला जाए। झोला उठाए और अपने ही बनाए मार्गदर्शक मंडल में चला जाए। आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी, वगैरह की संगत करे। कुछ उनकी सुने और कुछ अपनी सुनाए। उनके कोई गिले-शिकवे हों, तो उन्हें भी सुने और उनकी शिकायतें मिटाए। और आगे आने वाले के खिलाफ उनके साथ संयुक्त मोर्चा जमाए।

पर ऐसा नहीं हुआ। उन भारत-विरोधियों का मंसूबा पूरा नहीं हुआ, जो नहीं चाहते हैं कि भारत को 2047 तक एक विकसित देश बनाने का मोदी जी का संकल्प पूरा हो। ये भारत के दुश्मन जानते हैं कि भारत को अगर कोई 2047 तक, बल्कि उसके पहले भी विकसित देश बना सकता है, नरेंद्र मोदी ही बना सकता है। और कोई ऐसा होगा, जो अठारह-अठारह घंटे काम करता होगा, जो एक दिन की भी छुट्टी नहीं लेता होगा? हर्गिज नहीं। हमारे देश के दुश्मन जानते हैं कि अब भारत को विकसित देश बनने से रोकने का एक ही तरीका है — नरेंद्र मोदी को रिटायर करा दो। सो उन्होंने पूरी कोशिश की पचहत्तरवें बर्थ डे को रिटायरमेंट दिवस बनाने की। पर उनके मंसूबे पूरे नहीं हुए। और होते भी कैसे? रिटायर तो वो होता है, जो बायोलॉजीकल होता है। जो बायोलॉजीकल होता है, वही माता के गर्भ से जन्म लेता है। जो बायोलॉजीकल होता है, उसी की उम्र बढ़ती है। जो बायोलॉजीकल होता है, उसी के पचहत्तर साल रिटायरमेंट की पुकार करते हुए आते हैं। नॉन-बायोलॉजीकलों की बात ही कुछ और होती है। उनका जन्म दिन होता भी है, तो भी जन्म नहीं होता है, अवतरण होता है। उनके बरस बढ़ते भी हैं, तो उम्र नहीं बढ़ती है। उनकी जवानी कभी खत्म नहीं होती, उनका बुढ़ापा कभी नहीं आता।

एक बार को तो नागपुर वाले भागवत जी को भी धोखा हो गया। पहले तो उन्होंने भी पचहत्तर साल को पचहत्तर साल ही समझा और लगे राजी-राजी रिटायर होने के फायदे गिनाने में। पर जब भक्तों ने याद दिलाया, यह तो राष्ट्र विरोधी षडयंत्रकारियों की डिमांड है, तब उन्हें समझ में आया कि मोदी जी के मां को गाली दिए जाने से आहत होने का मतलब यह हर्गिज नहीं है कि वह बाकी लोगों की तरह ही बायोलॉजीकल हैं। झट इशारे में समझ गए कि ऐसा मार्गदर्शक मंडल बना ही नहीं है, जिसमें मोदी जी समा सकें। फिर क्या था, भागवत जी ने फौरन एलान कर दिया — हमारे यहां रिटायरमेंट नहीं होता। रिटायरमेंट संघ की संस्कृति में नहीं है। हाथ के हाथ, हफ्ते भर पहले ही अगले जन्म दिन की बधाई भी दे डाली। मोदी जी ने भी जवाब में पचहत्तरवें जन्म दिन की ही बधाई दी, वह भी लिखा-पढ़ी में। और दोनों भाई एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर आसानी से पचहत्तर की बाउंड्री फलांग गए।

और उसके बाद तो सारी दुनिया ने जो मोदी जी का पचहत्तरवां जन्म दिन मनाया, सारी दुनिया ने देखा। अखबारों ने मनाया, टेलीविजन ने मनाया, रेडियो ने मनाया, सोशल मीडिया ने मनाया। देश में मनाया, विदेश में भी मनाया। दिल्ली में कर्तव्य पथ पर मनाया, तो दुबई में बुर्ज खलीफा पर भी मनाया। भक्तों ने मनाया, तो भगवा सरकारों ने भी मनाया। मुंबइया सेलिब्रिटी लोगों ने मनाया, तो खेल वाले सेलिब्रिटी लोगों ने भी मनाया। अपनी-अपनी मोदी स्टोरी लिखकर मनाया। ट्रंप ने मनाया, तो पुतिन ने भी मनाया। इंग्लैंड के राजा ने भी मनाया और तेल वाले शेखों ने भी मनाया। क्या हुआ कि याद दिलाने पर मनाया, पर सब ने मनाया। क्या हुआ कि हजारों करोड़ फूंक कर दिखाया, पर तमाशा जोरदार दिखाया।

पर राहुल गांधी ने क्या किया? हजारों करोड़ के तमाशे का मजा किरकिरा कर दिया। शिष्टाचार का तकाजा होता है कि किसी का जन्म दिन है, तो उसे बधाई दो और हां गिफ़्ट भी। पर इन्होंने क्या गिफ़्ट दिया? अगले ही दिन वोट चोरी के अरोपों की दूसरी किस्त जारी कर दी। कर्नाटक में, अलंद सीट पर वोट काटने के जरिए वोट चोरी की कहानी। और महाराष्ट्र की एक सीट पर वोट जोड़ने के जरिए, चुनाव चोरी की कहानी। ऐसे में किसी नॉन-बायोलाजीकल के जन्म दिन का जश्न भी कब तक चल पाता। बेचारे भक्तों को और पूरी भगवा पार्टी को तो नाच-गाना बीच में छोडक़र ही, राहुल गांधी को गरियाने में जुटना पड़ा। और रास्ता ही क्या था, वोट चोरों को बचाने का इल्जाम भले चुनाव आयोग पर था, पर वोट चोरी का इल्जाम तो मोदी पार्टी पर ही था। जायका बिगड़ने में जो भी कसर बची थी, ट्रंप के एच1बी वीसा प्रहार ने पूरी कर दी। एक दिन पहले मोदी जी को जन्म दिन की बधाई दी और अगले ही दिन एक ही झटके में, सबसे ज्यादा भारतीयों को ही मिलने वाले इस वीसा की सालाना फीस 6 लाख से बढ़ाकर 88 लाख कर दी। आपका ये कैसा बर्थ डे गिफ़्ट, ट्रंप जी! राहुल तो राहुल, लगता है मोदी जी को ट्रंप को भी बर्थ डे शिष्टाचार सिखाना पड़ेगा। 

व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं।चोर को चोर कहने का सही समय : विष्णु नागर

यह चोर को चोर कहने का सही समय है, मगर यह ऐसा समय भी है, जब चोर को चोर कहे जाने से डर नहीं लगता।

वे दिन हवा हुए, जब चोर को कोई चोर कह देता था, तो उसकी हवा निकल जाती थी। चलते-चलते अचानक वह तेजी से भागने लगता था और कहीं छुप जाता था। भय से रोने लगता था। ईश्वर से प्रार्थना करता था कि कहीं पुलिस आ न धमके। जब पुलिस आ धमकती थी, तो वह घिघियाता था, चरण छूता था, अपने बीवी-बच्चों की बर्बादी का वास्ता देता था। गलती हो गई, हुजूर माफ कर दीजिए, पैर पकड़कर कहता था। जब इससे भी बात नहीं बनती थी, तो जो थोड़ा-बहुत मालमत्ता वह लाता था, उसके फिफ्टी-फिफ्टी पर दोनों के बीच सौदा पट जाता था। इस तरह वह मामला वहीं रफा-दफा हो जाता था।

फिर भी चोर, समाज की नजर में, मोहल्ले वालों की नजर में और यहां तक कि पुलिस वालों की नजर में चोर ही रहता था। कहीं चोरी हुई नहीं कि सबसे पहले उसे धरा जाता था। थाने ले जाया जाता था। उसकी पिटाई की जाती थी। उसने चोरी नहीं की होती थी, तो भी पुलिस उससे कुछ न कुछ वसूल कर उसे छोड़ती थी, चाहे इसके लिए चोर को अपने घर के बर्तन-भांडे बेचने पड़ जाएं!

अब चोर किसी से डरता नहीं। चोरी करने के बाद वही सबसे पहले थाने जाता है और इससे पहले कि जिसके यहां चोरी हुई है, वह एफ आई आर करवाने जाए, चोर पहुंच जाता है और एक फर्जी एफ आई आर दर्ज करवा आता है। नतीजा जिसके घर चोरी हुई है, उल्टा, वही फंस जाता है। बदनामी के डर से वह घर का बचा-खुचा मालमत्ता भी पुलिस को समर्पित कर देता है। इस तरह देखें, तो आज अपने ही नहीं, पुलिस के हितों की भी देख-रेख चोर कर रहे हैं!

चोर, अब पुलिस को अपना दोस्त, अपना साथी, अपना हमदर्द मानते हैं। चोर अब पुलिस से डर कर भागते नहीं, छुपते नहीं। वे जानते हैं कि उनकी रक्षा के लिए पुलिस ही नहीं, यह पूरा तंत्र कदम- कदम पर तैनात है। दिल्ली उनके साथ खड़ी है। लखनऊ उनके साथ खड़ा है।भोपाल, जयपुर, मुंबई, गुवाहाटी, देहरादून, अहमदाबाद सब आवश्यकतानुसार उसके साथ हैं। इसके अलावा  धर्म, जाति, गोत्र साथ खड़े हैं, क्षेत्रीयता साथ खड़ी है,  पार्टी खड़ी है। मंत्री खड़ा है, एम पी-एम एल ए खड़ा है, अधिकारियों का काफिला साथ खड़ा है। जो बैठा है, वह भी वक्त जरूरत खड़ा हो जाता है और सलाम बजाता है।

जिस चोर के अपराधों का रिकार्ड जितना पुराना और संगीन होता है, उतना ही मजबूत उसका रक्षा कवच होता है। उसे चोर कहना खतरे से खाली नहीं होता है। ऐसा कहने पर फौरन एक रिपोर्ट असम में, एक कर्नाटक में, एक उत्तराखंड में, एक महाराष्ट्र में, एक गुजरात में, एक मध्य प्रदेश, एक राजस्थान में, एक श्रीनगर में दर्ज करवा कर चोर कहनेवाले की टें बुलवा दी जाती है। मानहानि के केस पर केस  करवा दिए जाते हैं। ठोस सबूत के अभाव में आरोपी को जेल की हवा खाने भेज दिया जाता है।इधर चोर का मान और सम्मान बढ़ जाता है।

और चोर के एक नहीं, अनेक रूप हैं। चोर समय-समय पर वेश भी बदलता रहता है। चोरी का स्थान और वहां की संस्कृति चोर का वेश तय करती है। वह केसरिया बाना भी पहन सकता है और सिर पर हैट या पगड़ी या साफा भी धारण कर सकता है। कहीं वह साधु बना बैठा मिलता है, तो कहीं योगी। कहीं वह इंजीनियर रूप में इंजीनियरों को इंजीनियरिंग का ज्ञान देते हुए मिलता है, तो कहीं डाक्टर के चोगे में मरीज की तबियत का हाल लेते हुए दिखता है। कभी वह वायु सैनिक है, तो कभी  थल सेना का अफसर! कभी वह इतिहासकार और पुरातत्वविद् है और कभी वैज्ञानिक और समाजशास्त्री। कभी वह दाता है, तो कभी निरा भिक्षुक। कभी वह चौथी फेल है, कभी वह एंटायर पोलिटिकल साइंस मे पोस्ट ग्रेजुएट है! वह मायावी है!

कहीं वह तोहफे बांटने का धंधा करते हुए पाया जाता है, तो कहीं वह शिलान्यास करने का सर्कस करते हुए! कभी-कभी उसे दयालुता के प्रदर्शन का दौरा पड़ता है, तो वह अपने काफिले को रोककर एंबुलेंस को रास्ता देने का ड्रामा करता है। कभी वह मां-मां करके टेसुए बहाता है, तो कभी अपने को नान-बायोलॉजिकल बताता है। कहा न, वह उस जमाने का चोर नहीं, जो आज से पचास, पचहत्तर, सौ साल पहले पाए जाते थे। जिनकी दाढ़ी होती थी और उसमें तिनका फंसा होता था, ताकि लोग उसे आसानी से चिह्न सकें! वह इक्कीसवीं सदी का चोर है। चोरों का चोर है, उनका सिरमौर है।

कोई चोर उद्योगपति के वेश में मिलता है, तो कोई
हॉस्पिटल खोलकर बैठा है, तो किसी ने एयरकंडीशन्ड स्कूल खोलकर नोट गिनने का धंधा चला रखा है। कोई बड़ी से बड़ी सरकारी जमीन मिट्टी के भाव खरीदने के धंधे में है। कोई सरकार में बैठा है, तो कोई कारपोरेट के किसी ओहदे पर सरकारी माल हड़पने के लिए बैठाया गया है। कोई चोर ऐसा नहीं है, जिसके पास कोई पद न हो, आसन न हो, सिंहासन न हो, जिससे एमपी, एम एल ए मिलने न आते हों। उसे ज़ुकाम हो जाता है, तो उसकी मिजाजपुर्सी करने न आते हों! ऐसा कोई चोर नहीं, जो नैतिकता पर उम्दा भाषण देना न जानता हो। जो सत्य और अहिंसा के महत्व को बुद्ध से लेकर गांधी जी तक और फिर वहां से माननीय तक ले आने का कौशल न जानता हो! जिसने दुनिया के सारे सुख और सौंदर्य का पान न किया हो और जिसकी मृत्यु होने पर उसका राजकीय सम्मान के साथ दाह संस्कार करने से सरकार ने कभी इंकार किया हो! हर चोर बुनियादी रूप से देशभक्त होता है, क्योंकि वह जो भी करता है, देश की सीमा के अंदर रहकर करता है।

कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर साहित्यकार और पत्रकार हैं। स्वतंत्र लेखन में सक्रिय।


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