सैकड़ों अश्कबार आंखों ने दी आख़िरी विदाई समाजसेवा का उजाला क़ासिम रज़ा साहब सुपुर्द-ए-ख़ाक



संवाददाता जावेद शेख 

मुंबई के कुर्ला इलाक़े में उस वक़्त माहौल ग़मगीन हो गया जब समाजसेवा के स्तंभ, विदर्भ वेलफेयर एसोसिएशन (VWA) के संस्थापक और रूह-ए-रवाँ मरहूम क़ासिम रज़ा साहब को सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में न्यू क़ब्रिस्तान, एल.बी.एस. रोड, कुर्ला (वेस्ट) में सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया।
नमाज़-ए-जनाज़ा जुमे की नमाज़ के बाद अदा की गई, जिसमें शहर भर से बड़ी तादाद में उलेमा, सामाजिक रहनुमा, तालीमी शख्सियतें और विभिन्न तबकों के लोगों ने शिरकत की।
हर आंख नम थी, हर दिल मायूस — क्योंकि आज समाज ने अपना एक सच्चा खिदमतगार, एक सादा और नेक इंसान खो दिया।
क़ासिम रज़ा साहब ने अपनी पूरी ज़िंदगी इंसानियत, तालीम और समाज की बेहतरी के लिए समर्पित कर दी थी।
एक तालीमी शख्सियत के रूप में उन्होंने उर्दू माध्यम के छात्रों के लिए गणित जैसे मुश्किल विषय को आसान बनाकर “बाल भारती, पुणे” के ज़रिए एक नई राह दिखाई।
वो उर्दू लिसानी कमेटी, बाल भारती, पुणे के सक्रिय सदस्य भी रहे और अपनी भाषाई व शैक्षिक सेवाओं से नई पीढ़ी को अमूल्य योगदान दिया।
विदर्भ वेलफेयर एसोसिएशन (VWA) के बानी और सरपरस्त के रूप में उन्होंने समाज के ग़रीब, बेसहारा और ज़रूरतमंद लोगों के लिए राहत, शिक्षा, और रोज़गार से जुड़े कई अहम प्रोजेक्ट शुरू किए।
उनकी सरपरस्ती में सैकड़ों विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप मिली, और अनेक सामाजिक व तालीमी कार्यक्रमों के ज़रिए नई सोच का पैग़ाम फैला।
इस मौक़े पर विदर्भ वेलफेयर एसोसिएशन मुंबई के अध्यक्ष डॉक्टर क़ाज़ी नाज़िमुद्दीन,
आशियाना विदर्भ के अध्यक्ष सैफ़ुल्लाह ख़ान साहब,
सेक्रेटरी सैयद नासिर अली साहब,
फैज़ुल्लाह शेख, जाकिर सौदागर, हाफ़िज़ नदीमुद्दीन, सिद्दीक़ सर, अफ़ज़ल भाई, शोएब सर, अख़लाक़ सर, आरिफ़ शेख,
तथा सैकड़ों गणमान्य लोग, सामाजिक कार्यकर्ता और तालीमी हस्तियाँ मौजूद थीं।
हर किसी ने मरहूम की तालीमी, अदबी और समाजी सेवाओं को याद किया और दुआएँ कीं।
कई लोगों की आंखें नम थीं और हर ज़ुबान पर यही दुआ थी कि 
अल्लाह तआला मरहूम की मग़फ़िरत फ़रमाए, उनके दरजात बुलंद करे और उनके छोड़े हुए मिशन को क़ुबूल करे।”
एडिटर जफर सिद्दीकी (दैनिक बुलंद दुनिया) ने गहरा अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा —
“क़ासिम रज़ा साहब का जाना हमारे लिए सिर्फ़ एक नुक़सान नहीं, बल्कि एक युग का अंत है।
उन्होंने समाज को सोचने, समझने और एक-दूसरे से जुड़ने का सलीका सिखाया।
उनकी सादगी, अख़लाक़ और इंसानियत हमेशा याद रखी जाएगी।
मैं दुआ करता हूँ कि अल्लाह तआला उन्हें जन्नतुल फ़िरदौस में आला मुक़ाम अता करे,
और उनके अहल-ए-ख़ाना को सब्र-ए-जमील अता फरमाए।

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