अगर अवैधता पाई गई तो बिहार में SIR की पूरी प्रक्रिया रद्द की जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट



संवाददाता ए के सिंह 

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अगर चुनावी राज्य बिहार में वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) में कोई भी अवैधता पाई जाती है, तो पूरी प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि वह यह मानकर चल रही है कि भारत का चुनाव आयोग (ECI) एक संवैधानिक संस्था होने के नाते बिहार में एसआईआर के दौरान कानून का पालन कर रहा होगा.
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि वह भारत के चुनाव आयोग को देश भर में वोटर लिस्ट के रिवीजन के लिए इसी तरह की प्रक्रिया करने से नहीं रोक सकती. पीठ ने कहा कि बिहार एसआईआर मामले में उसका फैसला पूरे देश में एसआईआर पर लागू होगा.
सभी राज्यों के लिए SIR पर याचिकाकर्ताओं की चिंताएं
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने पीठ से आग्रह किया कि चुनाव आयोग को पूरी प्रक्रिया पूरी करने दी जाए और इसके पूरा होने के बाद अदालत इस प्रक्रिया का बेहतर आकलन कर सकेगी.
याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि जहां तक अन्य राज्यों का संबंध है, चुनाव आयोग एसआईआर के संबंध में आगे बढ़ रहा है और 10 सितंबर को सभी राज्यों के लिए एक बैठक आयोजित की गई थी. शंकरनारायणन ने कहा कि अन्य राज्यों के साथ आगे बढ़ने और एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई सवाल ही नहीं है.
पीठ ने कहा कि अदालत भारत के चुनाव आयोग को देश के अन्य हिस्सों में इसी तरह की प्रक्रिया करने से कैसे रोक सकती है. पीठ ने कहा, "एक बार यह सस्पेंस अवधि समाप्त हो जाए, तो कितने लोगों को नोटिस जारी किया गया है? उनमें से कितनों ने जवाब दिया है? उनमें से कितने अपने दावों के निपटारे के लिए आगे आए हैं..."
अगर बिहार एसआईआर मैथड अवैध है, तो इसे रद्द कर दिया जाएगा
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा कि बिहार में रहने वाले एक नागरिक के तौर पर मुझे इस चुनाव में वोट देने से क्यों रोका जाए, क्योंकि एक अवैध कार्यप्रणाली अपनाई गई है
इस पर जस्टिस कांत ने कहा कि अगर कोई भी कार्यप्रणाली अवैध है, तो अदालत उसे रद्द कर देगी और कहा, "हम निश्चित रूप से हस्तक्षेप करेंगे..." एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने मामले की जल्द विस्तृत सुनवाई की मांग की. जस्टिस कांत ने कहा, "वे जहां भी प्रक्रिया शुरू करने का प्रस्ताव कर रहे हैं और इस बीच, हम जो भी फैसला सुनाएंगे, वह निश्चित रूप से वहां लागू होगा..."

पीठ ने कहा कि वह SIR की वैधता पर अंतिम दलीलें सुनने के लिए 7 अक्टूबर की तारीख तय कर सकती है और इस प्रक्रिया पर कोई टुकड़े-टुकड़े में राय देने से इनकार कर दिया.
चुनाव आयोग की नियमावली का उल्लंघन
वहीं, वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि नियमों के साथ-साथ चुनाव आयोग की अपनी नियमावली का भी घोर उल्लंघन है और इसमें वस्तुत कोई पारदर्शिता नहीं है. पीठ ने कहा कि जैसे ही वह चुनाव आयोग से जवाब मांगेगी, वह एक अलग कहानी सुनाएगी, इसलिए उसे दोनों कहानियां सुननी होंगी.
पीठ ने कहा कि वह यह मानकर चल रही है कि चुनाव आयोग, एक संवैधानिक प्राधिकारी होने के नाते, बिहार में SIR के दौरान कानून का पालन कर रहा था. पीठ ने कहा कि किसी भी स्थिति में अगर वे नियमों और विनियमों, अपने वैधानिक और संवैधानिक दायित्व का पालन नहीं करते हैं, तो वह मामले को सूचीबद्ध करेगी और सुनवाई शुरू करेगी.
पहचान प्रमाण के रूप में आधार को लेकर उठाए गए मुद्दे
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 8 सितंबर के आदेश में संशोधन करने से इनकार कर दिया, जिसमें उसने बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण में आधार कार्ड को 12वें दस्तावेज के रूप में शामिल करने की अनुमति दी थी और इस बात पर ज़ोर दिया था कि आधार का उपयोग केवल पहचान के प्रमाण के रूप में किया जाएगा. पीठ ने कहा कि यह निर्देश केवल अंतरिम प्रकृति का है और प्रमाण के रूप में दस्तावेज की वैधता का मुद्दा एसआईआर मामले में अभी भी खुला है.
वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने पीठ से इस आधार पर अपने निर्देश में संशोधन करने का आग्रह किया कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं माना जा सकता और इसे चुनाव निकाय द्वारा स्वीकार किए जाने वाले अन्य दस्तावेजों के बराबर नहीं माना जा सकता.
इस पर पीठ ने कहा, "ड्राइविंग लाइसेंस जाली हो सकते हैं... राशन कार्ड जाली हो सकते हैं. कई दस्तावेज जाली हो सकते हैं. आधार का उपयोग कानून की अनुमति के अनुसार किया जाना चाहिए." प्रतिवेदनों पर सुनवाई के बाद, पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को निर्धारित की है. बता दें कि पीठ बिहार एसआईआर की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

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