राजनैतिक व्यंग्य समागम भागवत एक तेरा ही सहारा! : राजेंद्र शर्मा





छत्तीसगढ़ मोदी जी जैसा विपक्ष रामजी किसी दुश्मन को भी नहीं दें। बताइए, मोदी जी की फोटो देखते ही, इनके पेट में दर्द होने लगता है। अब मोदी जी ने देश को जीएसटी वाला गिफ्ट दिया है या नहीं? गिफ्ट भी सुनते हैं कि डबल-डबल है। और सबसे बड़ी बात यह कि मोदी जी ने गिफ्ट त्योहार के बड़े वाले सीजन में दिया है, जो दशहरा-दीवाली तक जाता है। अब क्या इस गिफ्ट के बदले में, गिफ्टार्थी लोग मोदी जी को एक थैंक यू भी नहीं दे सकते हैं।

बेशक, थैंक यू जरा बड़ा-सा रखना पड़ेगा, आखिरकार मोदी जी का गिफ्ट भी तो खासा बड़ा है। दीवाली गिफ्ट और रिटर्न गिफ्ट में, थोड़ा अनुपात तो होना ही चाहिए। और भैया आम पब्लिक के हिस्से की हम नहीं कहते, पर उद्योग-धंधे वालों को तो मोदी जी ने बड़ा वाला ही गिफ्ट दिया है। जितना बड़ा धंधे वाला, उतना ही बड़ा गिफ्ट।

पर बड़े धंधे वालों ने थैंक यू मोदी जी, धन्यवाद मोदी जी, कमाल मोदी जी वगैरह के विज्ञापन तरह-तरह के मीडिया में जरा से छपवा क्या दिए, विपक्ष वालों ने ऐसे शोर मचाना शुरू कर दिया जैसे इन विज्ञापनों में उनकी गांठ से पैसे जा रहे हों। यानी पैसा किसी का लग रहा है, फोटो किसी की छप रही है और हाय-हाय कोई और कर रहा है। इसी को कहते हैं, तेली का तेल जले, मशालची की छाती फटे! पर यह मुहावरा सुनने के बाद भी, मजाल है, जो इन विपक्षियों को रत्तीभर शर्म आयी हो। उल्टे पलटकर कहते फिर रहे हैं कि गिफ्ट देने और बदले में गिफ्ट लेने तक तो फिर भी गनीमत थी, पर मोदी जी तो थैंक यू भी गला दबाकर कहलवा रहे हैं।

मंत्रालय में मोदी जी के खास अफसर, मीडिया में जाने से पहले थैंक यू के एक-एक विज्ञापन को देखकर क्लीयरेंस दे रहे हैं। उद्योगपतियों को अपने चरणों में कितना झुकाओगे, मोदी जी! पर क्या यह भी संपदा निर्माताओं के बीच मोदी जी की लोकप्रियता से खिसियाए विपक्ष की खिसियानी दलील ही नहीं है? वर्ना चरणों में झुकाने में कितना-कितना क्या होता है? अधिकतम तो दंडवत है। और दंडवत तो वे बेचारे पहले ही खुशी-खुशी हुए पड़े हैं। मोदी जी किसी का गला क्यों दबाने लगे!

जीएसटी वाले थैंक यू मोदी जी को उद्योगपतियों का गला दबाने का मामला बताकर बदनाम करने से पेट नहीं भरा, तो मोदी जी के मणिपुर के दौरे के पीछे पड़ गए। और कुछ नहीं मिला, तो यही कि मणिपुर तो 2023 की मई से जल रहा था, अब सवा दो साल के बाद क्यों जा रहे हैं मोदी जी? बताइए, ये क्या सिर्फ विरोध करने के लिए हैं। अब तक मोदी जी मणिपुर नहीं गए थे, तो विपक्षी इसकी शिकायत करते थे कि मोदी जी मणिपुर क्यों नहीं जाते। और तो और, कुछ विरोधी तो बाकायदा दिनों की गिनती करने में लगे हुए थे कि कितने दिन हो गए, मोदी जी को मणिपुर गए बिना। और अब मोदी जी जा रहे थे, तो भाई लोगों ने पलटकर यह कहना शुरू कर दिया कि अब सवा दो साल बाद क्यों जा रहे हैं? मोदी जी सवा दो साल बाद भी उसी लिए जा रहे थे, जिस लिए इन सवा दो सालों में पहले कभी भी जा सकते थे। फैंसी ड्रैस में फोटो खिंचवाने, रोड शो में मोदी-मोदी कराने, मणिपुर से अपना पुराना रिश्ता बताने, साथ खड़े रहने का दावा करने और हजार-पंद्रह सौ करोड़ रुपये की परियोजनाओं के तोहफे का एलान करने। पर पहले नहीं गए, अब जा रहे थे, क्योंकि नागपुर की पाठशाला में पढ़ाया गया था, सब्र का फल मीठा होता है। तब गए, जब लड़-भिड़ के सब थक कर निढाल हो गए। गो बैक के नारे लगाने वालों के भी गले में जोर नहीं बचा।

पर विपक्ष वालों ने फिर भी हाय-हाय कर के मोदी जी के सगुन को बिगाड़ ही दिया। तीन घंटे के कार्यक्रम में से मोदी जी को जो आधा घंटा नाच-गाने का आनंद लेते हुए गुजारना था, उसमें भाई लोगों ने भांजी मार दी। स्वागत में नाच का विरोधियों ने इतना शोर मचाया, इतना शोर मचाया, कि मणिपुर वालों भी ने कहना शुरू कर दिया कि अभी तो चिताएं ठंडी भी नहीं हुई हैं, शोक  के बीच में हम नाचकर कैसे दिखाएं? हमारी आंखों के आंसू अभी सूखे भी नहीं हैं, बरसती आंखों से स्वागत के गीत कैसे गाएं? नतीजा यह कि इतनी प्रतीक्षा के बाद मोदी जी गए भी, पर स्वागत में नाच-गाना नहीं हुआ। फैंसी ड्रैस और कलगी वाले फैंसी हैट का प्रदर्शन, सिर्फ मोदी जी के भरोसे रह गया। और तो और, विपक्षियों की कांय-कांय से इंद्र देव भी चिढ़ गए और उन्होंने गुस्से से बारिश करा दी, जिससे मोदी जी का हैलीकॉप्टर यात्रा का प्रोग्राम खटाई में पड़ गया। कारों के काफिले में सफर करना पड़ा, पर रोड शो कैंसल हो गया। वो तो सडक़ के किनारे स्कूली बच्चों को खड़ा करा के शासन ने दौरे की शान रख ली, वर्ना विरोधियों ने सवा दो साल के इंतजार पर पानी ही फिरवा दिया था।

और इतने पर भी विरोधियों ने बस थोड़े ही कर दी। उल्टे भगवा कुनबे में ही झगड़ा लगाने पर तुले हुए हैं और वह भी बेबात। मोदी जी ने भागवत जी को एक प्रशस्ति लेख लिखकर जरा लंबा हैप्पी बर्थ डे क्या कर दिया, भाई लोग लग गए बाल की खाल निकालने में। कह रहे हैं कि भागवत जी का बर्थ डे तो हर साल ही आता है, पर ग्यारह साल में इससे पहले तो कभी मोदी जी ने ऐसा धमाकेदार हैप्पी बर्थ डे नहीं किया था। पचहत्तरवें बर्थ डे पर ही यह खास मेहरबानी क्यों? लगता है कि पचहत्तर की संख्या ही कुछ खास है। मोदी जी का भी पचहत्तरवां बर्थ डे बस आया ही समझिए। तो क्या मोदी जी, भागवत जी को यह संदेश दे रहे हैं कि दिल करे तो मेरे बर्थडे पर आप भी ऐसे ही मेरी प्रशस्ति कर देना, बस। पर रिटायरमेंट का लफ्ज कोई अपनी जुबान पर नहीं लाएगा और कलम पर लाने का तो खैर सवाल ही नहीं उठता है। जाहिर है कि यह सारी कयासबाजी भी झूठी है। भागवत जी तो पहले ही कह चुके हैं कि संघ का स्वयंसेवक कभी रिटायर्ड नहीं होता है। पर उसमें भी एक डंक है। साथ में जोड़ा है कि जब तक संघ सेवा कराए। यानी जब तक भागवत जी रिटायरमेंट की घंटी नहीं बजाएं। पर पड़ोसियों की तरह, जेन ज़ी वाले यहां भी घंटी बजाने पर उतर आए तो? भागवत, एक तेरा ही सहारा है!

व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोक लहर' के संपादक हैं

2. ऊटपटांगवाद के प्रवर्तक : विष्णु नागर

देश‌ आजकल ऊटपटांगवाद में फंसा हुआ है। नरेंद्र मोदी को जब भी इतिहास याद करेगा, इस वाद के प्रवर्तक के रूप में याद करेगा। इस तरह उनका नाम हमेशा इतिहास में दर्ज रहेगा। दुनिया की कोई ताकत उनका नाम इस रूप में मिटा नहीं पाएगी! उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा और संघ में य4ह वाद लोकप्रियता के नये से नये शिखर हर दिन छू रहा है। मोदी जी की ऊटपटांग अभिव्यक्तियों का डंका सारी दुनिया में बज रहा है और हम भारतीय उनके कारण हंसी का पात्र बने हुए हैं। आजकल वे राग स्वदेशी गा रहे हैं। उधर अमेरिका से संबंध बेहतर करने के लिए भी लालायित हैं। रिश्ते मान लो, ठीक हो गए तो राग स्वदेशी भी गायब हो जाएगा। वह किसी भी नारे को प्रकट करने और उसे गायब करने के मास्टर माइंड हैं। तो अभी‌ स्वदेशी पर काफी ज्ञान बघार रहे हैं और जब वे ज्ञान बघारना शुरू करते हैं, तो फिर उसकी कोई हद नहीं होती! उन्होंने यहां तक कहा कि मेरी स्वदेशी की परिभाषा इतनी सिंपल है कि पैसा किसका लगता है, इससे मुझे कोई लेना-देना नहीं। पैसा काला है या गोरा, इससे भी मुझे कोई लेना-देना नहीं। देश का प्रधानमंत्री इतना बेशर्म हो जाए और किसी को इस पर  गुस्सा तक न आए ऐसा भारत में ही हो सकता है।इसका कारण शायद यह है कि इनके ऊटपटांगवाद से लोग अब इतना ऊब चुके हैं कि लोग क्रोध करना और हंसना तक भूल चुके हैं। इतनी बेहूदगियों का वितरण ऊपर से नीचे तक प्रतिदिन होता रहता है कि लोगों ने इन पर ध्यान देना ही बंद कर दिया है! लोग मान चुके हैं कि ये हैं तो बेहूदगी है यहां। बेहूदगी और इनका चोली-दामन का साथ है।

हाल ही में जीवन के 75 वर्ष पूरे कर चुके संघ प्रमुख मोहन भागवत भी मोदी जी से पीछे नहीं हैं, बल्कि मूर्ख बनाने में दो कदम आगे हैं। उन्होंने फरमाया है कि भारत नंबर वन देश बनने जा रहा है। इससे अमेरिका, रूस और चीन चिंतित हैं। यह पढ़कर मेरा तो सिर फोड़ने का मन हुआ। अगर फोड़ लेता तो अस्पताल में होता और आपसे मन की यह बात कह नहीं पाता!

इन दोनों बड़े ज्ञानियों के अनुसरण में हर मंत्री ऊटपटांगवाद को मजबूत करने में व्यस्त है। जितना ऊटपटांग बोलोगे, जितनी बेहूदगियां करोगे, मोदी जी के उतने ही निकट पहुंचते जाओगे। उनके प्रति अपनी लायल्टी सिद्ध करने की सबसे उत्तम विधि यह है। जिनकी लायल्टी पुरानी होने के कारण सिद्ध और प्रसिद्ध है, उन्हें भी यह काम करना पड़ता है, वरना साहेब का मूड बिगड़ जाता है। सुबह का शिड्यूल बिगड़ जाता है। पेट में मरोड़ें उठने लगती हैं।

मोदी जी के सबसे विश्वस्त या तो अमित शाह हैं या  गौतम अडानी! शाह साहब को भी अपने साहेब की स्तुति में ऊटपटांगवाद चलाना पड़ता है। उन्होंने कुछ समय पहले कहा था -- 'आज दुनिया में कोई भी समस्या हो, जब तक नरेंद्र मोदी जी का बयान नहीं आ जाता, दुनिया समस्या पर विचार तय नहीं करती'! हद है न! इस कोटि की चमचागीरी और बेहूदगी मोदी युग की विशेषता है। इस बीच स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा का मुंह बंद कर दिया गया है, वरना वह ऐसी उत्तम कोटि की चमचागीरी पर हंसता और हंसाता! हंसता तो वह अब भी होगा, मगर हंसा नहीं पाता!

एक हैं, जिन्हें कुछ लोग योगी जी और कुछ लोग बुलडोजर बाबा कहते हैं। उनकी बौद्धिकता का उत्कर्ष देखना हो, तो उनके इस बयान में देखिए। उन्हें कंगना रनौत में मीरा बाई जैसी भक्ति, पद्मिनी जैसा तेज, रानी लक्ष्मीबाई जैसा शौर्य और वीरांगना भाव दिखता है। इस बात की संभावना शून्य से भी कम है कि योगी जी उन पर व्यंग्य कर रहे हों! भाजपाइयों की ट्रेजेडी यह है कि उन्हें व्यंग्य करना तक नहीं आता! जब भी कोई नायाब सी बात कहना चाहते हैं, इनके फूहड़पन का उगालदान खुल जाता  है। इन्हें अपने सामने चुनौती बन कर खड़े राहुल गांधी पर भी ढंग का व्यंग्य करना नहीं आता! इनकी पार्टी के महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री देवेन्द्र फडनवीस कहते हैं कि राहुल गांधी को अपना दिमाग चैक करवाना चाहिए।उनका दिमाग चोरी हो गया है या उनके दिमाग की चिप चोरी चली गई है। महाराज कुछ नहीं, तो आपने मराठी के शीर्ष हास्यकार पु. ल. देशपांडे को पढ़कर ही कुछ हास्यबोध सीखा होता! वैसे सीखना चाहते, आप तो नागपुर के हैं, आपको इतनी हिंदी तो आती होगी कि परसाई जी या शरद जोशी से भी सीख सकते थे। मगर इन तीनों से थोड़ा-थोड़ा भी सीखा होता, तो नुकसान हो जाता! वे फिर चड्डी धारण नहीं कर पाते और चड्डी नहीं पहन पाते, तो मुख्यमंत्री नहीं बन पाते और मुख्यमंत्री नहीं बन पाते, तो उनका यह जीवन अकारथ चला जाता! और अगला जन्म होता नहीं! इनके राजस्थानी संस्करण मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा हैं, जो उन्हीं मोदी जी को श्रद्धांजलि दे चुके हैं, जिन्होंने यह नायाब रत्न इस प्रदेश को सौंपा है! उनका कथन है कि कांग्रेस धर्मांतरण तथा लव-जिहाद के साथ है। इनकी बुद्धि इतनी दूर चली गई, यही बहुत है। इनकी समस्या तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से भी विकट है। फड़नवीस जी ने कम से कम पु. ल. देशपांडे का नाम तो अवश्य सुना होगा, मगर भजन जी शुरू से हिंदुत्व का भजन करने में इतने रत रहे हैं कि परसाई जी और शरद जी का नाम इनके दृष्टिपथ में कभी गुजरा नहीं होगा!

एक चीज इन्हें थमा दी गई है कि नेहरू जी को देश के हर मर्ज का कारण बताओ और फिर सोनिया गांधी से होते हुए राहुल और प्रियंका पर आ जाओ। यह मोर्चा बड़ी मुस्तैदी से किरण रिजूजी ने संभाल रखा है। वह उन नमूनों में हैं, जिन्हें इतना आता है कि राहुल गांधी राष्ट्रविरोधी ताकतों से मिले हुए हैं!

इतिहास संघियों-भाजपाइयों का इतना प्रिय विषय है कि ये मुगलों को इतिहास से ही निष्कासन दे चुके हैं। अकबर से राणा प्रताप को विजय दिलवा चुके हैं, हालांकि जिस बाबर को ये दशकों से गाली देते आए हैं, जिस बाबरी मस्जिद को लेकर इतना बड़ा तूमार खड़ा किया था, वह भी मुगल ही था! अभी मध्य प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री यह ज्ञान दिया है कि भारत की खोज वास्कोडिगामा ने नहीं, बल्कि चंदन नामक एक व्यापारी ने की थी!

आपको इनमें से किसी भी बात पर गुस्सा आया? नहीं आया! मुझे आया? नहीं आया! इरफान हबीब तो इन बातों को हंसी में भी नहीं उड़ाएंगे! तो ये है मेरा देश कि जिसके प्रधानमंत्री और संघ प्रमुख इतने अधिक 'बुद्धिमान' हैं। इन्हें ज्ञान के लिए किसी की जरूरत नहीं।ये तो पैदा होते ही ज्ञानी हो जाते हैं ।ये नेता भी हैं, विद्वान भी हैं, वैज्ञानिक भी हैं।रक्षा विशेषज्ञ भीदेश‌ आजकल ऊटपटांगवाद में फंसा हुआ है। नरेंद्र मोदी को जब भी इतिहास याद करेगा, इस वाद के प्रवर्तक के रूप में याद करेगा।इस तरह उनका नाम हमेशा इतिहास में दर्ज रहेगा। दुनिया की कोई ताकत उनका नाम इस रूप में मिटा नहीं पाएगी!उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा और संघ में यह वाद लोकप्रियता के नये से नये शिखर हर दिन छू रहा है।मोदी जी की ऊटपटांग अभिव्यक्तियों का डंका सारी दुनिया में बज रहा है और हम भारतीय उनके कारण हंसी का पात्र बने हुए हैं। आजकल वे राग स्वदेशी गा रहे हैं। उधर अमेरिका से संबंध बेहतर करने के लिए भी लालायित हैं। रिश्ते मान लो , ठीक हो गए तो राग स्वदेशी भी गायब हो जाएगा। वह किसी भी नारे को प्रकट करने और उसे गायब करने के मास्टर माइंड हैं।तो अभी‌ स्वदेशी पर काफी ज्ञान बघार रहे हैं और जब वे ज्ञान बघारना शुरू करते हैं तो फिर उसकी कोई हद नहीं होती!उन्होंने यहां तक कहा कि मेरी स्वदेशी की परिभाषा इतनी सिंपल है कि पैसा किसका लगता है,  इससे मुझे कोई लेना- देना नहीं।पैसा काला है या गोरा, इससे भी मुझे कोई लेना-देना नहीं।' देश का प्रधानमंत्री इतना बेशर्म हो जाए और किसी को इस पर  गुस्सा तक न आए ऐसा भारत में ही हो सकता है।इसका कारण शायद यह है कि इनके ऊटपटांगवाद से लोग अब इतना ऊब चुके हैं कि लोग क्रोध करना और हंसना तक भूल चुके हैं। इतनी बेहूदगियों का वितरण ऊपर से नीचे तक प्रतिदिन होता रहता है कि लोगों ने इन पर ध्यान देना ही बंद कर दिया है!लोग मान चुके हैं कि ये हैं तो बेहूदगी है यहां। बेहूदगी और इनका चोली- दामन का साथ है।

हाल ही में जीवन के 75 वर्ष पूरे कर चुके संघ प्रमुख मोहन भागवत भी मोदी जी से पीछे नहीं हैं बल्कि मूर्ख बनाने में दो कदम आगे हैं। उन्होंने फरमाया है कि भारत नंबर वन देश बनने जा रहा है। इससे अमेरिका, रूस और चीन चिंतित हैं। यह पढ़कर मेरा तो सिर फोड़ने का मन हुआ।अगर फोड़ लेता तो अस्पताल में होता और आपसे मन की यह बात कह नहीं पाता!

इन दोनों बड़े ज्ञानियों के अनुसरण में हर मंत्री ऊटपटांगवाद को मजबूत करने में व्यस्त है। जितना ऊटपटांग बोलोगे, जितनी बेहूदगियां करोगे, मोदी जी के उतने ही निकट पहुंचते जाओगे।उनके प्रति अपनी लायल्टी सिद्ध करने की सबसे उत्तम विधि यह है।जिनकी लायल्टी पुरानी होने के कारण सिद्ध और प्रसिद्ध है, उन्हें भी यह काम करना पड़ता है वरना साहेब का मूड बिगड़ जाता है।सुबह का शिड्यूल बिगड़ जाता है।पेट में मरोड़ें उठने लगती हैं।

मोदी जी के सबसे विश्वस्त या तो अमित शाह हैं या  गौतम अडानी! शाह साहब को भी अपने साहेब की स्तुति में ऊटपटांगवाद चलाना पड़ता है। उन्होंने कुछ समय पहले कहा था-' आज दुनिया में कोई भी समस्या हो, जब तक नरेंद्र मोदी जी का बयान नहीं आ जाता, दुनिया समस्या पर विचार तय नहीं करती' !हद है न! इस कोटि की चमचागीरी और बेहूदगी मोदी युग की विशेषता है।इस बीच स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा का मुंह बंद कर दिया गया है वरना वह ऐसी उत्तम कोटि की चमचागीरी पर हंसता और हंसाता!हंसता तो वह अब भी होगा मगर हंसा नहीं पाता!

एक हैं, जिन्हें कुछ लोग योगी जी और कुछ लोग बुलडोजर बाबा कहते हैं।उनकी बौद्धिकता का उत्कर्ष देखना हो तो उनके इस बयान में देखिए। उन्हें कंगना रनौत में मीरा बाई जैसी भक्ति , पद्मिनी जैसा तेज ,रानी लक्ष्मीबाई जैसा शौर्य और वीरांगना भाव दिखता है। इस बात की संभावना शून्य से भी कम है कि योगी जी उन पर व्यंग्य कर रहे हों! भाजपाइयों की ट्रेजेडी यह है कि उन्हें व्यंग्य करना तक नहीं आता!जब भी कोई नायाब सी बात कहना चाहते हैं इनके फूहड़पन का उगालदान खुल जाता  है। इन्हें अपने सामने चुनौती बन कर खड़े राहुल गांधी पर भी ढंग का व्यंग्य करना नहीं आता!इनकी पार्टी के महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री देवेन्द्र फडनवीस कहते हैं कि राहुल गांधी को अपना दिमाग चैक करवाना चाहिए।उनका दिमाग चोरी हो गया है या उनके दिमाग की चिप चोरी चली गई है। महाराज कुछ नहीं तो आपने मराठी के शीर्ष हास्यकार पु ल देशपांडे को पढ़कर ही कुछ हास्यबोध सीखा होता! वैसे सीखना चाहते तो  आप नागपुर के हैं, आपको इतनी हिंदी तो आती होगी कि परसाई जी या शरद जोशी से भी सीख सकते थे मगर इन तीनों से थोड़ा- थोड़ा भी सीखा होता तो नुकसान हो जाता! वे फिर चड्डी धारण नहीं कर पाते और चड्डी नहीं पहन पाते तो मुख्यमंत्री नहीं बन पाते और मुख्यमंत्री नहीं बन पाते तो उनका यह जीवन अकारथ चला जाता! और अगला जन्म होता नहीं!इनके राजस्थानी संस्करण मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा हैं, जो उन्हीं मोदी जी को श्रद्धांजलि दे चुके हैं, जिन्होंने यह नायाब रत्न इस प्रदेश को सौंपा है!उनका कथन है कि कांग्रेस धर्मांतरण तथा लव-जिहाद के साथ है। इनकी बुद्धि इतनी दूर चली गई ,यही बहुत है।इनकी समस्या तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से भी विकट है। फड़नवीस जी ने कम से कम पु ल देशपांडे का नाम तो अवश्य सुना होगा मगर भजन जी शुरू से हिंदुत्व का भजन करने में इतने रत रहे हैं कि परसाई जी और शरद जी का नाम इनके दृष्टिपथ में कभी गुजरा नहीं होगा!

एक चीज इन्हें थमा दी गई है कि नेहरू जी को देश के हर मर्ज का कारण बताओ और फिर सोनिया गांधी से होते हुए राहुल और प्रियंका पर आ जाओ।यह मोर्चा बड़ी मुस्तैदी से किरण रिजूजी ने संभाल रखा है।वह उन नमूनों में हैं, जिन्हें इतना आता है कि राहुल गांधी राष्ट्रविरोधी ताकतों से मिले हुए हैं!

इतिहास संघियों- भाजपाइयों का इतना प्रिय विषय है कि ये मुगलों को इतिहास से ही निष्कासन दे चुके हैं।अकबर से राणा प्रताप को विजय दिलवा चुके हैं, हालांकि जिस बाबर को ये दशकों से गाली देते आए हैं, जिस बाबरी मस्जिद को लेकर इतना बड़ा तूमार खड़ा किया था, वह भी मुगल ही था!अभी मध्य प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री यह ज्ञान दिया है कि भारत की खोज वास्कोडिगामा ने नहीं बल्कि चंदन नामक एक व्यापारी ने की थी!

आपको इनमें से किसी भी बात पर गुस्सा आया? नहीं आया! मुझे आया? नहीं आया! इरफान हबीब तो इन बातों को हंसी में भी नहीं उड़ाएंगे! तो ये है मेरा देश कि जिसके प्रधानमंत्री और संघ प्रमुख इतने अधिक 'बुद्धिमान' हैं। इन्हें ज्ञान के लिए किसी की जरूरत नहीं।ये तो पैदा होते ही ज्ञानी हो जाते हैं। ये नेता भी हैं, विद्वान भी हैं, वैज्ञानिक भी हैं। रक्षा विशेषज्ञ भी और भी न जाने क्या-क्या हैं! इन्होंने ही यह महान आइडिया दिया था कि बादल होंगे, तो रडार हमारे को पकड़ नहीं पाएंगे। और नाली के पानी से चाय बनाने का ब्रांड न्यू आइडिया भी इन्हीं की देन है। इनके ईश्वर ने इनके मुंह से यह भी निकलवाया था कि मैं नॉन-बायोलॉजिकल हूं। इनकी विश्व प्रसिद्धि में इनके इस कथन का अतुलनीय योगदान है! नॉन बायोलॉजिकल इनसे ऐसा चिपक गया है कि जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी इनका साथ देगा! और भी न जाने क्या-क्या हैं!

विष्णु नागर साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं।


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