संवाददाता ए के अंजान
इंदिरा गांधी बनना आसान नहीं होता अंधभक्त उनके आका के फेल होने के बाद उसका ठीकरा भारत की महान प्रधानमंत्री आयरन लेडी इंदिरा गांधी पर फोड़ रहे हैं।
ऑपरेशन सिंदूर शुरू करने के बाद पूरे देश को लगा था कि अब फिर से पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए जाएँगे, बलूचिस्तान को आज़ाद करा लिया जाएगा और PoK को ले लिया जाएगा। लेकिन भक्तों का सपना टूट गया। मैं इसका दोष मोदी जी को नहीं दूँगा। बस इतना कहूँगा कि- इंदिरा गांधी बनना आसान नहीं होता है।
वो जिगर वो कलेजा वो हिम्मत कि अमेरिका जैसी वैश्विक शक्ति और सनकी अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को उन्ही की भाषा में जवाब दिया जा सके, यह बस इंदिरा गांधी के ही बस की बात थी। इंदिरा जी में जो निर्भीकता थी वो महात्मा गांधी और नेहरू जी से आई थी।
1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी का सिर्फ एक लक्ष्य था पाकिस्तान के दो टुकड़े करके उसकी कमर तोड़ देना। वो उन्होंने करके दिखा दिया। पाकिस्तान के 93000 सैनिकों को हिरासत में ले लिया गया था तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान की हजारों मील ज़मीन कब्जे में ले ली गई थी। लेकिन एक आर्थिक रूप से भिखारी देश, उसकी टूटी हुई संस्थाओं को साथ लेकर चलने और भारत पर इसका बोझ डालने को इंदिरा जी ने सही नहीं समझा। उन्हें भारत की चिंता थी यहाँ के गरीबों की चिंता थी। उन्होंने बेइज्जत पाकिस्तान को उसकी ज़मीन लौटा दी, सैनिक लौटा दिए और दुनिया भर की ताकतों ने पहली बार यह जाना कि भारत एक ज़िम्मेदार लोकतांत्रिक देश है जो हिंसा नहीं चाहता लेकिन सबक सिखाना जानता है। हमारी यह साख थी कि उस समय पूरी दुनिया भारत का गुणगान कर रही थी।
जबकि आज पहलगाम के कायराना हमले में पहले तो हमारे निर्दोष नागरिक मारे गए, मोदी सरकार सोती रही और बाद में जब बदला लेने का मौक़ा मिला तो अमेरिकी दबाव में आ गए।
जब आज से पचास साल पहले भारत अमेरिका के आगे नहीं झुका तो आज क्यों झुका? उत्तर साफ़ है क्योंकि तब भारत की कमान आयरन लेडी इंदिरा जी के हाथ में थी और आज कमान अपने मियाँ मिट्ठू नरेंद्र मोदी के हाथ। जो सत्ता में आने से पहले बड़बोले थे और आज मुँह से शब्द नहीं निकल रहे हैं। आज भारत के आंतरिक मामलों में अमेरिका दखल दे रहा है। मोदी जी के मित्र, गौतम अदानी अगर अमेरिका में भ्रष्टाचार में फँसे हैं तो उसका ख़ामियाज़ा भारत को क्यों भुगतना चाहिए?
डोनाल्ड ट्रम्प से पता नहीं मोदी जी की कैसी दोस्ती है लेकिन भारत ने इतिहास में कभी भी कश्मीर मामले में किसी का दख़ल स्वीकार नहीं किया और आज ट्रम्प की इतनी हिम्मत की वो भारत की संप्रभुता को ललकारे और बोले की कश्मीर में वो मध्यस्थता करेगा? यह भारत का अपमान है। ‘माय फ्रेंड डोलैंड’ और ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ बोलने वाले मोदी जी ने ट्रम्प की इतनी हिम्मत बढ़ा दी की वो 140 करोड़ आबादी वाले देश को यह बता रहा है कि हम कब युद्ध करें और कब नहीं।
बहुत हो चुका मोदी जी, पहले चीन ने भारत की बेइज्जती कर हमारी ज़मीन हड़प ली और आप चुप्पी साधे बैठे रहे। असली मौनी महाराज तो आप ही हैं और दोष देते हैं दुनिया के महान अर्थशास्त्री और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को। 26/11 मुंबई हमलों को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं कि भारत ने क्या किया था। मनमोहन सिंह वैश्विक नेता थे, एक महान नेता। भारत ने 42 दिन के भीतर पाकिस्तान के हलक से खींचकर उगलवा लिया था कि अजमल कसाब पाकिस्तानी आतंकी है। और पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान को शर्मसार कर दिया था, पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी थी। क्या मोदी सरकार पाकिस्तान से कबूलनामा करवा सकती है कि पहलगाम के आतंकी पाकिस्तान से आए थे? यह कभी नहीं होगा क्योंकि मोदी जी को यह नहीं पता कि देश कैसे चलाया जाता है, देश का गौरव और सम्मान कैसे बनाया और बढ़ाया जाता है। किसी को भूलना नहीं चाहिए कि जब मुंबई में (26/11) हमला हो रहा था, तब मोदी जी बतौर तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री अपनी ही देश की सरकार को कोस रहे थे जबकि उन्हें सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए था। शायद यही मोदी जी का चरित्र है।
आज विश्व का कोई देश भारत के साथ नहीं खड़ा हुआ, जबकि चीन और तुर्किए जैसे देश पाकिस्तान के साथ खुलकर खड़े हो गए।
मनमोहन सिंह के समय भारत ग्लोबल साउथ का नेता बन रहा था और आज कोई पूछ नहीं रहा है। ये मनमोहन ही थे जिनके समय 2012 में कश्मीर के अंदर आतंकवाद अपने सबसे निचले स्तर पर था। जबसे मोदी ने सत्ता संभाली आतंकवाद बढ़ता ही गया। चाहे नोटबंदी की हो, चाहे उछल - उछल कर मंच पर चिग्घाड़े हों आतंकवाद बढ़ता ही गया। पहले तो देश के लोगों की जान नहीं बचा सके, इंटेलिजेंस फेलियर की जिम्मेदारी नहीं ली और तथाकथित ‘बदला’ भी अधूरा लिया, इस अधूरे हमले में भी हमारे 15 नागरिक मारे गए।
असल में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं एक असफलता की सूची हैं। आतंकी हमलों की फ़ेहरिस्त देखिए और जांचिये कि क्यों इंदिरा गांधी बनना आसान नहीं है!
5 दिसंबर 2014-एकसाथ कई हमले (जम्मू-कश्मीर): आतंकियों ने उरी में एक सेना शिविर में ग्रेनेड हमला किया, और पुंछ में नागरिक बस पर हमले हुए। 11 सुरक्षाकर्मी और 8 नागरिक शहीद गए।
2 जनवरी 2016-पठानकोट हमला (जम्मू-कश्मीर): 6 आतंकवादियों ने पठानकोट में भारतीय वायुसेना के एयर बेस पर हमला कर दिया, हमारे 7 जवान शहीद हो गए और एक नागरिक भी मारा गया।
18 सितंबर 2016-उरी हमला (जम्मू-कश्मीर): 4 आतंकियों ने सेना के बेस में घुसकर हमला कर दिया, हमारे 19 जवान शहीद हो गए।
27 नवंबर 2016- नगरोटा हमला (जम्मू-कश्मीर): तीन आतंकियों ने जम्मू के पास नगरोटा में सेना शिविर पर हमला किया, जिसमें 7 सैनिक (2 अधिकारी सहित) शहीद गए।
10 जुलाई 2017- अमरनाथ यात्रा हमला (जम्मू-कश्मीर): अनंतनाग में अमरनाथ तीर्थयात्रियों की बस पर हमले में 7 नागरिक मारे गए, 19 घायल।
10 फरवरी 2018- सुंजवान हमला (जम्मू-कश्मीर): चार आतंकियों ने जम्मू के सुंजवान में सेना शिविर पर हमला किया, 6 सैनिक और 1 नागरिक शहीद गए।
14 फ़रवरी 2019-पुलवामा हमला (जम्मू-कश्मीर): CRPF के क़ाफ़िले पर हमला, हमारे 40 जवान शहीद हो गए।
12 जून 2024- रियासी बस हमला (जम्मू-कश्मीर): रियासी में तीर्थयात्रियों की बस पर हमले में 9 मरे, 33 घायल।
15 अगस्त 2024- उधमपुर हमला (जम्मू-कश्मीर): उधमपुर में CRPF गश्त पर हमले में 2 जवान मारे गए।
मोदी सरकार की नाकामी की गिनती यहीं नहीं ख़त्म होती। अकेले 2024-25 में ही - सोनमर्ग, गुलमर्ग, कठुआ, पुँछ और श्रीनगर में आतंकी हमले हुए। सवाल यह है कि मोदी सरकार ने किस किस का बदला लिया? किस किस मामले में ऑपरेशन सिंदूर चलाया? आज जब मौक़ा था कि पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सके, उसे घेरकर पीछे किया जा सके, बलूचिस्तान को आज़ाद करके PoK पर वापस भारत का झंडा फहराया जा सके तो मोदी सरकार नाकाम हो गई। देश की आशाओं पर पानी फेर दिया। सोचा था इतिहास दोहराया जाएगा, इंदिरा गांधी की तरह फिर से कोई पाकिस्तान को सबक सिखाकर उसके टुकड़े करेगा। मगर अफ़सोस कि - इंदिरा गांधी बनना आसान नहीं होता है।
साभार पूर्व आल इंडिया कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू
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