मुंबई की भीड़भाड़ से बेहाल लोकल, डबल डेकर योजना बनी सिर्फ एक वादा!


मुंबई: देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की जीवनरेखा कही जानेवाली लोकल ट्रेनें आज भी भीड़ और अव्यवस्था की मार झेल रही हैं। पीक आवर्स में यात्रियों को दरवाजे से लटककर सफर करना पड़ता है, और यह दशकों पुरानी परेशानी आज भी जस की तस बनी हुई है।

एक दशक पहले, 2012 में रेलवे ने भीड़ को कम करने के उद्देश्य से डबल डेकर लोकल ट्रेन शुरू करने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी। इस योजना से उम्मीद थी कि एक कोच में दो लेवल के ज़रिए दोगुनी क्षमता में यात्रियों को सफर की सुविधा मिलेगी। लेकिन 13 साल बीत जाने के बाद भी यह सपना सिर्फ कागज़ों में ही रह गया है।

फाइलें धूल खा रही हैं, अधिकारी चुप हैं
डबल डेकर लोकल की योजना अब "ठंडे बस्ते" में चली गई है। जब रेलवे अधिकारियों से इस परियोजना पर सवाल किए गए तो उन्होंने चुप्पी साध ली। यह चुप्पी ही संकेत देती है कि सरकार और प्रशासन इस विषय में कितने गंभीर हैं।

घोषणाएं बहुत, ज़मीनी हकीकत कुछ और
मुंबई-अहमदाबाद और मुंबई-सूरत के बीच लंबे सफर के लिए डबल डेकर एक्सप्रेस ट्रेनें पहले से ही चल रही हैं। ऐसे में स्थानीय स्तर पर इसकी शुरुआत क्यों नहीं हो पा रही, यह सवाल अब आम जनता और रेल यात्रियों को परेशान कर रहा है।

रेलवे प्रवासी संघ के राजेश पंड्या ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा, “लोग मर रहे हैं और सरकार सोई पड़ी है। हर साल लोकल से गिरकर सैकड़ों जानें जाती हैं। यह वादा भी बाकी वादों की तरह सिर्फ एक जुमला बनकर रह गया है।”

विकास के नाम पर खोखले वादे?
भीड़ को कम करने के लिए रेलवे ने 9 डिब्बों की जगह 12 और फिर 15 डिब्बों की लोकल शुरू की, लेकिन समस्या अब भी जस की तस बनी हुई है। अंधेरी, दादर, बांद्रा जैसे स्टेशनों पर उतरना-चढ़ना किसी युद्ध से कम नहीं लगता।

मुंबईकरों की आवाज़ कब सुनी जाएगी?
मानसून की आहट के साथ स्टेशन की अधूरी छतें, पानी भराव और सुरक्षा जैसे कई मुद्दे फिर से सतह पर आने लगे हैं। ऐसे में सरकार और रेलवे से उम्मीद की जा रही है कि वो खोखले वादों से बाहर आकर ठोस और कारगर कदम उठाएंगे।

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