मुबारकपुर आज़मगढ़मुबारकपुर में अक़ीदतन के साथ मनाया गया दसवीं मुहर्रम का जुलूस


संवाददाता प्रहारी मुम्बई न्यूज से अमित तिवारी की खास रिपोर्ट
मुबारकपुर में कड़ी सुरक्षा के बीच यौमे आशुरा सकुशल सम्पन्न हुआ, बतादें की मुहर्रम के 10 वीं तारीख को मुबारकपुर में बारह गाँव से ताज़िया जुलूस निकलता है जो शाम को पांच बजे दफन किया गया। ताज़िया जुलूस शिया सुन्नी दोनों निकालते हैं. इस जुलूस के रास्तों पर जगह जगह हुसैन की याद में सबीले हुसैन का एहतेमाम होता है ..इसी क्रम में समाजिक संगठन वॉरियर्स हेल्प क्लब के द्वारा मोहल्ला हैदराबाद शाह के पंजे स्थित सबीले हुसैन का आयोजन किया गया जिसमें सभी को निशुल्क पानी पिलाया गया क्लब के अध्यक्ष ने बताया कि यह प्रोग्राम हमलोग तीन साल से कर रहे हैं जिसमें 15 हज़ार से 20 हज़ार पाउच पानी पिलाया जाता है। दरअसल इस्लाम धर्म में मुहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम होता है, तथा मुहर्रम महीने का दसवां दिन सबसे अहम होता है, इस दिन को यौमे-आशुरा कहते हैं, इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो एलैहे वसल्लम साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों का इराक के शहर करबला में यज़ीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हो गये, इसिलए उस दिन को याद किया जाता है।
यजीद बहुत ताकतवर था. यजीद के पास हथियार, खंजर, तलवारें थीं. जबकि हुसैन के काफिले में सिर्फ 72 लोग ही थे. इसी जंग के दौरान मुहर्रम की 10 तारीख को यजीद की फौज ने इमाम हुसैन और उनके साथियों का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया. उनमें हुसैन के 6 महीने के बेटे अली असगर, 18 साल के अली अकबर और 7 साल के उनके भतीजे कासिम (हसन के बेटे) भी शहीद हो गए थे. यही वजह है कि मुहर्रम की 10 तारीख सबसे अहम होती है, जिसे रोज-ए-आशुरा कहते हैं। 

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