संवाददाता जाबिर शेख
दिल्ली सरकारी नौकरियों और आईआईटी आईआईएम जैसे उच्च शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण मिलने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए ओबीसी को आरक्षण देने का लिया है निर्णय एससी, एसटी दिव्यांग, पूर्व सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों को भी मिलेगा आरक्षण.. सुप्रीम कोर्ट ऑफिसर्स एंड सर्वेंट्स रूल्स, 1961 में किया गया संशोधन.भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने अपने गैर-न्यायिक कर्मचारियों की नियुक्ति प्रक्रिया में किया है बड़ा बदलाव इसके तहत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति , दिव्यांग, पूर्व सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के साथ-साथ ओबीसी को भी आरक्षण का लाभ देने की अधिसूचना कर दी गई है जारी इस बदलाव के तहत सुप्रीम कोर्ट ऑफिसर्स एंड सर्वेंट्स ( कंडीशन्स ऑफ सर्विस एंड कंडक्ट ) रूल्स, 1961 के नियम 4A में किया गया है संशोधन संविधान के अनुच्छेद 146(2) के तहत मुख्य न्यायाधीश की शक्तियों का प्रयोग करते हुए किया गया है यह संशोधन
अधिसूचना में स्पष्ट किया गया है कि इन सभी श्रेणियों को केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी आदेशों और अधिसूचनाओं के अनुसार मिलेगा आरक्षण.जैसा कि उन पदों के लिए निर्धारित वेतनमान के अनुरूप होता है.यह निर्णय केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि न्यायिक व्यवस्था में समावेशिता की दिशा में माना जा रहा है एक बड़ा कदम सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम उस ऐतिहासिक फैसले के 33 साल बाद उठाया है, जब 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने ओबीसी को 27% आरक्षण देने को संवैधानिक रूप से ठहराया था वैध
बावजूद इसके, सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक भर्तियों में अब तक ओबीसी वर्ग को आरक्षण का नहीं दिया गया था लाभ पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे अर्जुन सिंह ने उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी वर्ग को भी आरक्षण का रास्ता किया था साफ राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण की कर रहे थे मांग. उन्होंने इसे ‘ऐतिहासिक सुधार’ करार दिया मुख्य न्यायाधीश गवई ने एससी और एसटी वर्ग के लिए एक स्पष्ट रोस्टर प्रणाली लागू करने की भी की है पहल जो आर.के. सबरवाल बनाम हरियाणा राज्य (1995) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाए गए 200-पॉइंट रोस्टर सिस्टम के अनुरूप है यह प्रणाली सुनिश्चित करेगी कि सामान्य और आरक्षित वर्गों के बीच बना रहे न्यायोचित संतुलन देश के इतिहास में यह पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट के आंतरिक नियमों में इस प्रकार का व्यापक सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने वाला किया गया है संशोधन
जिस सुप्रीम कोर्ट ने दशकों पहले सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को दी थी मान्यता आज वही अदालत
अपने भीतर उसी न्याय को लागू करती आ रही है नजर।
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