नई दिल्ली। वरिष्ठ और विश्वसनीय पत्रकार श्री अजित अंजुम पर बिहार के बेगूसराय में दायर की गयी प्राथमिकी (एफ़आईआर) इस देश की बची-खुची स्वतंत्र पत्रकारिता पर एक हमला है। जनवादी लेखक संघ इस हमले की निंदा करता है और लेखक समुदाय से इस हमले के ख़िलाफ़ मुखर होने का आह्वान करता है।
श्री अजित अंजुम ने पिछले दो दिनों में अपने यूट्यूब चैनल पर बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण की प्रक्रिया को ख़बर बनाते हुए उसकी अनेक अनियमितताओं को सामने लाया है। यह बात शासन-प्रशासन के गले नहीं उतरी और जिस बीएलओ ने श्री अंजुम से सबसे लंबी बातचीत की थी, उन्हीं की ओर से उन पर प्राथमिकी दर्ज करवायी गयी है। श्री अंजुम का यह कहना निराधार नहीं है कि उक्त बीएलओ तो बलि का बकरा हैं। इसके पीछे कौन हैं, यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। नहीं तो बजाये उन अनियमितताओं को दूर करने का आश्वासन देने के, जिन्हें श्री अंजुम ने सामने लाया, उन पर भारतीय न्याय संहिता की धाराओं के तहत प्रशासन के काम में बाधा डालने से लेकर सांप्रदायिक माहौल को ख़राब करने की कोशिशों तक के आरोप न लगाये जाते।
जनवादी लेखक संघ इस लड़ाई में श्री अजित अंजुम के साथ एकजुटता व्यक्त करता है। हम स्वतंत्र पत्रकारिता के पक्ष में मज़बूती से खड़े रहने के लिए प्रतिबद्ध हैं और चुनाव आयोग तथा बिहार सरकार से यह माँग करते हैं कि स्वतंत्र पत्रकारिता को बाधित करने के ऐसे प्रयासों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगायी जाये।
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